मंगलवार, 30 मार्च 2010

सबसे पहले तो श्रीमान  जी को धन्यवाद जो मेरे इस ब्लाग से सबसे पहले जुडे। यह मेरी ज़िन्दगी का पहला लेख है अगर इसमें कोई गलती हो जाऐ तो उसके लिए मैं क्षमा चाहुँगा और पाठको से विनती है कि अपने सुझाव अवश्य दें।
भारत में विदेशी शिक्षा संस्थानो कि आवश्यकता एवं महत्व

मुझे पता चला कि अभी कुछ दिन पहले सरकार ने विदेशी शिक्षा संस्थानो की स्थापना सम्बंधी बिल को मंजूर कर लिया है। अब भारत मे भी विदेशी शिक्षा संस्थान खुल सकेंगे जिससे उन भारतिय विद्यार्थियो को लाभ प्राप्त होगाअ जो विदेश जाकर शिक्षा प्राप्त करना चाहते है पर विदेश जाने व वहाँ रहने का खर्च नहीं वहन कर सकते है,  बहुँत खुशी की बात है अब कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों में न जाकर विद्यार्थियो को अपने ही देश मे विदेशी शिक्षा संस्थानो की डिग्री प्राप्त हो जाया करेगी जिससे अब किसी भी भारतिय विद्यार्थि का विदेश में अपमान व उसकी हत्या न होगी।


परन्तु इस बिल को मंजूर करने की यहीं एक मात्र कारण तो नहीं हो सकती है तो फिर क्या कारण है इसे मंजूर करने का ? क्या हमारे देश में उत्तम किस्म के शिक्षा संस्थान नहीं है? क्या हमारे शिक्षा संस्थानो में अध्यापन कार्य में कार्यरत शिक्षक कम योग्यता रखते हैं ?


नहीं, ये सब गलत है क्योकि हमारे देश के शिक्षा संस्थान कम उत्तम कोटि के नहीं है, वे उत्तम कोटि के है पर ज्ञान के मामले में, कमी है तो बाहरी सजावट व किमती तकनीकि उपकरणों की हमारे शिक्षा संस्थानों में आवश्यकता है तो निवेश कि यदि विदेशी शिक्षा संस्थानों की भाँति हमारे शिक्षा संस्थानो को अच्छे उपकरण और उनकी थोडी सी सजावट कर दी जाए तो हमारे शिक्षा संस्थान भी उत्तम कोटी के होंगे। यह कहना भी गलत है की हमारे शिक्षा संस्थानो मे कार्यरत शिक्षक कम योग्यता रखते है अगर आकडो पर जाये तो भारत के शिक्षको से आन लाईन ट्यूशन लेने वाले विदेशी छात्रो की संख्या, भारत के आन लाईन ट्यूशन लेने वाले छात्रो से कहीं अधिक होंगी।


भारत में खुलने वाले इन शिक्षा संस्थानो में कम से कम ८०% शिक्षक भारतिय ही होंगे तो जब अपने ही शिक्षको से पढना है तो फिर इन विदेशी शिक्षा संस्थानो के खुलने का क्या लाभ है ? बहुत सोच विचार करने पर कुछ तथ्य प्रकट होते है जो कुछ हद तक सही लगते है जैसे इन संस्थानो की स्थापना में भूमि कि आवश्यकता होगी जिस कारण बडी मात्रा में भूमि का अधिग्रहण किया जायेगा जिससे गाँव कि जो कृषि भूमि है वह कम हो जायेगी जिसका असर हमारे खाद्यान पर पडेगा किसान को उसकी भूमि का मूल्य प्राप्त हो जायेगा पर जिस कृषि भूमि पर पहले अनाज पैदा किया जाता था वह इस अधिग्रहण से समाप्त हो जायेगा, इस सब के उपरांत भी भारत में पूँजी तो आयेगी परन्तु उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हो पायेगी अनाज कई पैदावार कम हो जायेगी जिसका असर भारतिय बाजार पर भी पडेगा।


अब से ४-५ साल पहले भी विकास के नाम पर प्रवासी भारतियो ने पूँजी लगायी और भूमि को खरीदा गया उस भूमि पर बहुमंजिलि ईमारतें तैयार कि गयी जिससे भूमि का मूल्य असमान गति से बडा साथ में सरकार ने भी नयी-नयी योजनाए घोषित करके उस गति को ओर भी अधिक कर दिया जिसे हम सभी नए देखा है और उसका क्या असर हुआ है वह भी सभी लोगों ने देखा है।


अब हम अपनी बात पर वापस आते है कि क्या हमारे देश में विदेशी शिक्षा संस्थानों की आवश्यकता है तो मेरा कहना है नहीं, हमें अपने ही शिक्षा संस्थानों में ही वे सभी सुविधाऐ उपलब्ध कराने का प्रयत्न करना चाहिए वो भी अपने देश के लोगों, सरकार व निजी संस्थानो द्वारा, विदेशों से सहायता लेकर नहीं क्योकि कोई भी आर्थिक विकास ऋण लेकर नहीं किया जा सकता हैं जबकि यह ज्ञात हो कि वह ऋण नहीं चुकाया जा पायेगा केवल उसका ब्याज हि दिया जाता रहेगा। यह कोई पूर्ण उपचार नहीं हैं यह तो दिखावटी आराम मात्र हैं।


क्यों बार बार भारत विदेशीयो के लिए कमाई का एक केंद्र बन जाता है जब कभी भी आर्थिक मंदी आती है तो सभी की निगाहें भारत की ओर हो जाती है। सभी विदेशीयो को तो भारत में बहुत धन सम्पदा दिखायी देती है पर स्वयं भारतियो को यह नहीं दिखायी देता हैं। वे लोग विकास करके आगे निकल जाते है और हम उनसे पीछे रह जाते हैं। जबकि आगे हमें होना चाहिए व पीछे उन्हें, पर होता इसका उल्टा हैं।अब भी यही होगा इन शिक्षा संस्थानो से जो लाभ प्राप्त होगा वो सब विदेश चला जाऐगा, कागज पर ये लिख देना कि लाभ को वापस नहीं ले जाया जायेगा बल्कि भारत में हीं निवेश किया जाएगा काले रंग कि रेखाऐ मात्र रह जाऐंगी इस पर निगरानी कौन रखेगा, जो छात्र उसमें पढेंगे वे या पढाने वाले शिक्षक ये पढेंगे-पढायेंगें या निगरानी करेंगे। बाकि लोगो को तो समय ही नहीं होगा सब अपने-अपने कार्यो में व्यस्त होंगे।


अब सोचने कि बारी हमारी है कि हमें क्या निर्णय लेना है, दूसरों पर नहीं छोडना हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें