बुधवार, 10 मार्च 2010

"सुभद्रा कुमारी चौहान की रचना झाँसी की रानी"

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढे भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार औरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन छबील थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ्ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़्बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध - व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोडना ये थे उस्के प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भ्वानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों मेम उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूडिया कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजा जी रानी शोक-स्मानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हरषाया,
राज्य हडप करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती हैं, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी न्यह दासी अब महारानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक की कौन बिसात ?
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-विपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम गम से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपडे बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सेरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
’नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्जत परदेसी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में बी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छ्बीली ने रण चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोंपडी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में केई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनकी गाथा छोड चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खडी हैं लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेंफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बडा जवानो में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वन्द्ध असमानो में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बडी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोडा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोडी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विजय मिली, पर अग्रेजों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आयी थी,
युद्ध क्षेत्र में उन दोंनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीचे ह्यूरोज़ आ गया, हाय घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोडा अडा, नया घोडा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गयी हम्को जो सीख सिखानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लडी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

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