आधार की बाते करे, मोहन द्विवेदी
आओ चलो अब पास बैठो प्यार की बातें करें ।
वीरानियों के शहर में, बाजार की बातें करें ॥
कांपती गर्दन उठाये, कामना की गठरियाँ
बोझ से झुकती कमर, झाडी बनी है ठठरियाँ ।
बढ रही पल-पल उदासी, बेरुखी से खास की,
आँख में फिर भी बनी है, किरण धुंधली आस की ।
लाचारियों के दौर में, ललकार की बातें करें।
आओ चलो अब पास बैठो प्यार की बातें करें। ।
यह मुखौटा सभ्यता का, जब जरा सा हट गया,
सतयुग इतिहास का, एक और पन्ना फट गया ।
विष कहाँ से आ मिला, धारा पय्स्वी थी यहाँ,
मोक्ष पाने के लिए, डुबकी लगाते थे जहाँ ।
सूखी नदी तट ढह रहे, मझधार की बातें करें ।
आओ चलो अब पास बैठो प्यार की बातें करें।
जा रहे हैं हम कहाँ, हमको नहीं आभास हैं,
खो गए हैं भीड में फिर भी नहीं विश्वांस हैं ।
वातावरण में सुखद दिन की, शेष आहट हैं अभी,
जिन्दगी भी शेष होगी, छटपटाहट है अभी।
दुश्मन जमाना हो गया तो, यार की बातें करे
आओ चलो अब पास बैठो प्यार की बातें करें।
गा रहा हूँ गीत हैं, अपने समय के साज पर,
जानता हूँ फिर हंसोगे, तुम मेरी आवाज पर।
आज ही फिर कल बनेगा, कल बदलकर आज हैं
बाप के सर टोकरी थी, आप के सर ताज हैं
जिस पर खडा हैं यह महल, आधार की बातें करे
आओ चलो अब पास बैठो प्यार की बातें करें।
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